भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

औरत / लालित्य ललित

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सदियों से सदियों तक
अपमान का घूंट
पीती रहेगी औरत !
उसे जलाया गया, सताया गया
किया गया वहशीपन
और भी अनगिनत
जुल्मों सितम
कई बार वह भीतर तक
पथरा गई, कभी फांसी भी -
लगा ली
बिल्डिंग से कूदी कई बार
जहर भी खाया उसने
मगर फिर भी वह
कई-कई रूपों में
हमारे सामने हैं
मां-बाप को
बंधी तनख़्वाह से खुशी है ।