भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
औरत का क्या / चंद्र रेखा ढडवाल
Kavita Kosh से
पुरुष को चाहिए
सब अपने मन का
औरत का क्या
झोंक लगाते
धूल झाड़ते
उधड़ा सीते
गाँठ लगाते
गाँठ खोलते
गहने गढ़वाते
गहने तुड़वाते
इसे मनाते
उसे पतियाते
भागवत सुनते
कीर्तन करते
जी जाती है