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औरतें: दो / तुलसी रमण

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गाची में बाँध कर रोटियाँ
भार-भादो उतर रहीं
ऊँची-टीर से नीचे नेवल की ओर
पूछता है कोई सयाणा :
              कहाँ जा रही हैं दरातियाँ?
औरतें दरातियाँ हैं
प्रखर और चमकती हुई

काट लाएँगी नेवल की मूछें :
                  कुशा के बूटे
दयार के शुच्चे फर्श पर
           झाड़ू लगाने के लिए
और छँदड़ के किसी कोने
छिपाकर रख लेंगी
नेवल और टीर को जोडतीं
           कुछ गुच्छियाँ
वर्ष भारत जीने-मरने के लिए


गाची= कमर में बाँधने का वस्त्र, ऊँची टीर= पर्वत शिखर,नेवल= नदी तट के पास का क्षेत्र, छँदड़= ढलानदार छत में सामान की जगह

                   जुलाई 1998