भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
औरतें बाग़ी होती हैं / पूजा खिल्लन
Kavita Kosh से
औरतें जब जीना चाहती हैं
अपनी शर्तों पर, तो बाग़ी होती हैं
मर्द जीने की छूट भी
अहसान की थाली में ही देना
पसन्द करते है उसे
तब जबकि किन्हीं मरे हुए रिश्तों के
जीवाश्म चिपके होते हैं उसकी
ज़िन्दा देह पर,
हर बात पर
किया जाता है सिर्फ़ विमर्श
या फिर उसकी नंगी देह का साबुन बनाकर बेच दिया गया
होता है किसी बाज़ार में,
तब औरत ख़ुद एक बयान होती है
अपने पर हुए अन्याय के ख़िलाफ़।