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औळ्यूं / ॠतुप्रिया
Kavita Kosh से
म्हूं जद भी सोऊं
घर रौ
सगळौ काम सांवट’र
तद
थारी औळ्यूं आवै मा
अबै कुण सुणावै लोर्यां
किण री गोद्यां में
सिर राख’र सोऊं
किणी चीज री
कमी नीं है अठै
सुख रौ सागर है
म्हारौ संसार
पण
कांईं ठाह
कांईं बात है
थारी औळ्यूं आवै
हरमेस
म्हूं जद भी सोऊं।