कंचन बन जाऊँ / सुरजन परोही
बिखरा है जीवन मेरा, पिरो दो तो कंचन बन जाऊँ
सन में हमारे पुरखे भारत से सूरीनाम लाए गए
भारतीय थे पहले हम, सूरीनामी आज कहलाए गए
धर्म-जाति का झगड़ा छोड़े, आपस में मेल बढ़ाए गए
भारत से निकला हीरा मोती अपनी कीमत भूल गया
माटी में बिताई जिन्दगी, अब फाँसी का फन्दा खुल गया
विद्या सागर कहलाए कई, पर मैं निपट अज्ञानी हूँ
माटी के पुतले हैं हम, और माटी हो जाना है
इस देश की माटी को, भारत-सा श्रेष्ठ बनाना है
मौत भी आए तो आए, पर देश पर बलिदान हो जाना है।
सूरीनाम धरती मातृभूमि हमारी इस पर मर मिट जाते हम
हर एक की है यही तमन्ना, फिर भी मिलता है गम
फिर भी मिलता है गम, अपनी अपनी कमजोरी से
बनो एक में मोटी रस्सी, पतली पतली डोरी से
देश भक्तों के हित में, खींचकर सीधी करो लगाम
धरती माँ की लाज रखकर, सूरीनाम देश को बनाओ महान।