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कंप्यूटर! ज़रा-सा अहसान कर / राजय पवार

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हाल ही में पड़ोसी के घर
आया है एक मल्टीमीडिया
उसकी पत्नी, बेटा और वह
हो गए हैं कम्प्यूटर लिटरेट ।
उनकी निग़ाहों में हम जैसे
हैं लोग इलिटरेट ।

खुलते ही विंडोज कम्प्यूटर की
उसने बंद कर दी विंडो घर की ।

जब शाम के वक़्त हमारे बच्चे खेलते किडा-किडी
तब उनका बच्चा कम्प्यूटर पर खेलता गेम फिफा
अकेला... पाग़ल-सा...

माँ से ख़रगोश की कहानी सुनकर सोनेवाला
यह बच्चा
अब गेम खेलता हुआ
सो जाता की-बोर्ड पर ही ।
फिर बिना माँ की गोद
सीधा बिस्तर पर

पति-पत्नी दोनों
शाम के वक़्त आँगन में
झूले पर झूलते
करते थे शेयर
बातें भीतर की बाहर की ।

अब अलग-अलग फ़ाइलें दोनों की
और पासवर्ड भी अलग-अलग दोनों के
एक का पता दूसरे को नहीं ।

अपनी आइडेंटिटी को खोकर
ई-मेल की आई-डी पाकर
अब पड़ोसियों से बतियाता नहीं
नहीं रहा पड़ोसियों से अपनापा।

दूसरों से परिचय ऑरकुट पर
अपनों से परिचय ऑफ़-कट पर
उसका परिचय अब
बायो-डाटा के साथ
वेबसाईट पर उपलब्ध है
डब्ल्यू...डब्ल्यू...डब्ल्यू...

कॉलोनी का एक पड़ोसी
कम्प्यूटर के कारण दूर हो गया हमसे ।
मन की फ़्लॉपी पर
अहं को कॉपी कर लिया है उसने
वायरस के लगने से
’हार्ट डिस्क’ करप्ट हो गई है उसकी ।

ओ कम्प्यूटर
तुमने तो जीवन में एंटर किया
लेकिन हमें थोड़ा-सा बैक्स्पेस दे दो।

कम्प्यूटर !
तुम ज़रूर आना...
लेकिन थोड़ा-सा अहसान करना
- बच्चों का बचपन मत छिनना
- कहानी वाले ख़रगोश को मत मारना
- खिलने देना पारस्परिक रिश्तों को
- रहने देना गुंजाइश दो बातों की
पति- पत्नी के बीच ।

ओ ! पड़ोसी के कम्प्यूटर !
- मत खोलना रिश्तों की गाँठें
- मत बढ़ाना दूरियाँ इंसानों के बीच

अब ज़रा-सा अहसान करो
जो-जो किया है तुमने इरेज़
उसे फिर से फ़ीड करो
...ज़रा-सा अहसान करो ।

मूल कोंकणी से अनुवाद : ब्रजपाल सिंह गहलोत