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कई पृष्ठों में अमलतास / मुक्ता
Kavita Kosh से
अमलतास खिल रहा है
ताप की तिर्यक रेखा में अड़ा
ऊर्जा को विस्तार देता
खिल रहा है अमलतास
कवि-वाटिका बनी
प्रिय आश्रय स्थल
विराट, सुंदर, मनोहर
कई पृष्ठों में अमलतास
युग बीत गया--समय की ओट में
नख दंत सहित आते हैं लोग
ठिठक जाता है बूढ़ापन
बच्चों के चेहरों पर खिंच आई हैं-
धूप की लकीरें
शामियाने, बंदनवार, भेंट—उपहार
इनके बरक्स हवा, पानी, मिट्टी की दुर्लभ सन्निधि
एक किसान नें फिर कर ली है आत्महत्या
क्या था आदमी ? तप्त कुंडों में एक तिरस्कार भरी यातना
या—प्राणियों के व्यापारी की उन्माद भरी बलि
कौन है जो हवा, सागर या पृथ्वी की—
धमनियों के रक्त की रक्षा करता है
अमलतास के वृक्ष ने फूलों के आते रहने की
सनद टाँक दी है टहनियों पर।