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कई वर्षों से बेहतर है मानसून / कात्यायनी

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कई वर्षों से
बेहतर है मानसून
ज़िन्दगी की तमाम परेशानियों के बीच।
तमाम फ़सलों-वनस्पतियों,
खर-पतवार के बीच उग आए हैं
स्त्री-मुक्ति के तमाम पैरोकार।
लड़ने का स्वाद
कहीं भूल न जाए स्त्री
ज़िन्दगी के दंशों
और अकादमिक बहसों की
आदी होती हुई।

रचनाकाल : अप्रैल, 1996