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कच्ची / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी
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कच्ची हो ! भले कच्ची हो मेरी रचना
मैंने शक्ति, उत्पल को नहीं पढ़ा ।
पढ़े नहीं जीवनानन्द,
रमेन्द्रमुमार ।
विनय मजूमदार,
भास्कर दत्त भी नहीं पढ़े ।
कच्ची हो ! भले कच्ची हो रचना।
इस बार मुँह उठाकर
कह सकता हूँ,
इतने दिन कुछ भी नहीं पढ़ा...
पढ़ता रहा हूँ सिर्फ़ तुम्हें —
जिसने सारे जीवन
एक लाइन भी
कविता नहीं लिखी ।
मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी