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कछु न सुहात पै उदास परबस बास / आलम
Kavita Kosh से
कछु न सुहात पै उदास परबस बास,
जाके बस जै तासों जीतहँ पै हारिये ।
'आलम' कहै हो हम, दुह विध थकीं कान्ह,
अनदेखैं दुख देखैं धीरज न धारिये ।
कछु लै कहोगे कै, अबोले ही रहोगे लाल,
मन के मरोरे की मन ही मैं मारिये ।
मोह सों चितैबो कीजै, चितँ की चाहि कै,
जु मोहनी चितौनी प्यारे मो तन निवारिये ।