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कजरी गीत / बाबा बैद्यनाथ झा
Kavita Kosh से
झूम रहा है यह सावन तो,
साजन अब आएँ॥
चलो सखी, कजरी हम गाएँ॥
वर्षा बरस रही उपवन में,
आग सुलगती मेरे तन में।
भींग रही हूँ झूम-झूम कर,
मिलन कामना पलती मन में।
आकर प्रियतम गले लगा लें,
दोनों सुख पाएँ।
चलो सखी, कजरी हम गाएँ॥
दोनो मिलकर झूला झूलें,
जग की सब बातों को भूलें।
इस गाने की धुन में उड़कर,
पंख बिना हम नभ को छू लें।
आलिंगन में बद्ध परस्पर,
मन को बहलाएँ।
चलो सखी, कजरी हम गाएँ॥
यह कजरी है गीत निराला,
पी लें हम यौवन का प्याला।
मत्त मयूरी नाच रही है,
जो देखे होता मतवाला।
प्रकृति-रूपसी के इस सर में,
सबको नहलाएँ।
चलो सखी, कजरी हम गाएँ।