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कठिनाई / प्रताप सहगल

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1.
जो हम हैं
वो हम नहीं होना चाहते
और जो हम नहीं हैं
वो हम होना चाहते हैं
तुम्हें कैसे समझाऊं मेरे दोस्त!
कि इस होने और न होने के बीच
ज़िन्दगी का सबसे सुनहरी दौर गुज़र जाता है.

2.
हर बार जो बात मैं तुमसे कहना चाहता हूं
नहीं कह पाता
क्योंकि हर बार
तुम्हारे और मेरे बीच
कुछ शब्द आ जाते हैं.

3.
जब हम तुम सभी धुँधलकों को पार कर आए
तभी
तुम्हारे और मेरे बीच
सामाजिक दायित्व के नाम पर
एक भद्दी शक्ल आ गई.