भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कठै लाधै मिनखपणूँ / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
कठै लाधै मिनखपणूँ,
धूणैं री भभूत हुम्यो !
भेळप भिळगी’र मेळ-
चील रो मूत हूग्यो,
नाख दी नाड़ नेकी-
जण जण जमदूत हुग्यो
किण नै कह’र कुण सुणै,
कलजुग अवधूत हुग्यो !