भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कत्तेॅ बदली गेलै गॉव / प्रदीप प्रभात

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहाँ हेराय गेलै संगीत,
जाँता, मूसल आरो ढेकी के।
आबेॅ गुंजै छै आवाज
गॉवोॅ मेॅ फ्लोवर मील के
कहाँ सुनाय पड़ै छै कन्हौं
बैलौं के टिटकारबोॅ
हरवाहा के ललकार।
आबेॅ गॉवोॅ मेॅ सुनै लेॅ मिलै छै
ट्रैक्टर के आवाज।
बाजै छै रेडियो, टेलीविजन पर गीत
हेराय गेलै गॉवोॅ के संगीत।
सब्भेॅ लोग गेलै भूली
झूमर, सोहर, लोरी
अल्हा, लोर कायन, भोर कायन
फगूआ, चैता आरेा वारामासा।
फिल्मी धुनोॅ पर गैलोॅ जाय छै विहारोॅ गीत
भूली गेलै आपनोॅ परम्परा, संस्कृति आरो संगीत।
बढ़ी गेलै गॉवों मेॅ पंच, सरपंच आरो पूपंच।
बदली गेलै चेहरा, सब्भै दै छै पैंतरा।
कत्तेॅ बदली गेलै गॉव।
संझौती वक्ती
बैठै छेलै लोग चौपालोॅ पर।
देररात चलतें रहै गप्प-सप
कुच्छु हिन्नेॅ के, कुच्छु हुन्नेॅ के
पुवारी आरो पछियारी टोला के
गाबै छेलै गीत बिरहा, होली चैता के।
गॉव के चौपालोॅ पर फैसला होय छेलै
चमरू आरो शुकरा रोॅ झगड़ा के
आपसी रोॅ रगड़ा के।
आवेॅ ई सब कोसैं दूर होय गेलै।
रमेशवा आरो दिनेशवा के वकील बनतैं।
फैसला रोॅ दरबार लागेॅ लागलै
कोर्ट-कचहरी मेॅ।
रमेशवा आरो दिनेशवा के चलॅे लागलै
चमचम आरो रसगुल्ला।
तारीख पर तारीख बढ़लोॅ जाय छै
नै हुवेॅ सकै छै फैसला।
कत्तॅे बदली गेलै गॉव।
फैसला सुनाय छेलै एक्केॅ तारीखोॅ मेॅ
विमल, अमरेन्द्र पंचोॅ के जोड़ी नेॅ
जेना सुनावै छेलै अलगू-जुम्मन नेॅ
फैसला दै छेलै सुच्चा
कचहरी मेॅ बैठलोॅ छै लुच्चा।
कचहरी मेॅ फैसला दै छै कच्चा
हुक्का, तम्बाकू कु रोॅ चौपालोॅ पर
जमलोॅ रहै छेलै पंच।
फैसला दै मेॅ नै होय छेलै देर
कोर्ट-कचहरी मेॅ होय