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कत्बः / परवीन शाकिर
Kavita Kosh से
कत्बः<ref>शिलालेख या क़ब्र पर लगे पत्थर पर लिखी बातें</ref>
यहाँ पे वो लड़की सो रही है
केः जिसकी आँखों ने नींद से ख़्वाब मोल लेकर
विसाल<ref>मिलन</ref> की उम्र रतजगे में गुज़ार दी थी
अजीब था इंतज़ार उसका
के: जिसने तक़दीर के तुनुक-हौसला<ref>डरपोक</ref> महाजन के हाथ
बस इक दरीचा-ए- नीमबाज़<ref>अधखुली खिड़की</ref> के सुख पे
शहर का शहर रहन करवा दिया था
लेकिन वो इक तारा
केः जिसकी किरनों के मान पर
चाँद से हरीफ़ाना<ref>प्रतियोगियों जैसी</ref> कशमकश थी
जब उसके माथे पे खुलने वाला हुआ
तो उस पल
सपेद-ए-सुबह<ref>सुबह कि सफ़ेदी</ref> भी नमूदार<ref>प्रकट होना</ref> हो चुका था
फ़िराक़<ref>विरह</ref> का लम्हा आ चुका था !
शब्दार्थ
<references/>