भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कदै रैयौ है मनुख अठै / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
रोपूं कविता रौ बीज ओ
नहीं - कोई नूंतो कोनी आपनै
कै देखण आवौ इण नै।
जद कदै फूटसी ओ
बणैगो दरख्त कोई महान
अर परिन्दा आ‘र हींडसी इण री डाळयां पर
आ भी नही।
सूंपूं आज
आपणी आत्मा रौ जळ
ईं री जड़ां मांय
सोचता थकां कै
कदै कोई थक्यौ-हारयौ मनुख
गुजरसी ईं राह स्यूं
तो मिल जावै बीं नै छियां रौ एक टुकड़ौ
अर हौ जावै भरोसौ
कै कदै रैयौ है मनुख अठै।