कनुप्रिया का श्यामल कंत / गीता शर्मा बित्थारिया
शरद पूनम की रात है
तुम्हारे आने के
शुभ शगुन
होने लगे हैं
मेरे श्याम
मधुबन में
बेला खिल उठा है
जूही मुस्कराये मन्द मन्द
हार सिंगार महक रहा है
रजनीगंधा बहक रहा है
अंबर पर
रजत रात पुलक रही है
तारों ने चौक पुर दिये है
मुदित चाँद भी चमक रहा है
कदंब ने बांधे लिए वंदनवार
मधुमालिती हर्षाए बिछी है
वाम अंग भी फरक रहें हैं
नयनों को कजरा ठहर गया है
गौर गात पर श्रृंगार सजा है
निधि वन मुरली से गूंजित है
महारास की आस बंधी है
कब आओगे
मेरे श्याम
एक युग बीता है
बिना मिलन के मन रीता है
अब तो आ जाओ
मेरे माधव
सिर्फ एक बार
कालिंदी कुंज
कदंब की डाल
रीत गई विभावरी
मुरझा गया बेला
गुमसुम हुई जूही
झर गया हारसिंगार
रजनीगंधा के उदास पात
तारों ने छोड़ा आंगन
डूब गया मलिन चाँद
कदंब कुंज
कलांत मन
नयनों में आँसू
बह रहा है कजरा
कालिंदी सम
श्यामल हुई अब
श्रृंगारित गौर गात
तुम नहीं आए
मेरे श्यामल कंत
तुम बिन नीरव प्रेम में
देखो माधव
तुम्हारी राधा
श्यामा बन
जोगन हुई है
चंदा भी बैरागी है
बिन तुम्हारे
अब तो मधुसूदन
अमावस हुई है
शरद पूनम की रात
तुलसी रूखी सूखी है
जमुना हुई क्षीणकाय
सूना है सारा वृंदावन
वंशी ने साध लिया
ऐकांत मौन विराम
ह्रदय ने जैसे
धारा है गिरिवन
विरही पीड़ा से व्यथित
कनुप्रिया संग
तुमने कहा था ना
मेरे मनमोहन
जब हंसती हो तुम
कनुप्रिया तो
झरती है जैसे चांदनी
तुम्हें पता ही नहीं चला
मुरारी तुम्हारे चांद को
कब का ग्रहण लगा
तुम आ जाओ
मेरे मीत मेरे कन्हाई
तुम आओ तो
निशित प्रसुनों में
सुरभि लौटे
बुझे दीयों में
उजास आये
तुम आओ तो
मुरली में भी
धुन लौटे
शरद पूनम की रात है
तुम आओ तो
मेरे कनु मेरे कंत
चाँदनी निकल आये