भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कपाल-क्रिया / लीलाधर मंडलोई
Kavita Kosh से
मां की चिता
बस चिटकती लकडियों की गूंज थी
समय हो चला था
पंडित ने कहा
'कपाल क्रिया'
और थमा दिया एक बेडौल लम्बा मोटा बांस
जाने क्या हुआ
मैंने थाम लिया
भाई का हाथ
और बोला हठात्
'जरा हौले से'
और बन्द कर लीं आंखें
00