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कब लगि सहबे अगिनियाँ के धाहवा / लछिमी सखी
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कब लगि सहबे अगिनियाँ के धाहवा, ए सोहागिनि !
लछ चौरासी कर धार।।
नइया रे डुबेला ना त अगम अथहवा, ए सोहागिनि !
कहिले से कर ना बिचार।।
सतगुरु ज्ञान के केवट मलहवा, ए सोहागिनि !
संत कर शब्द करुआर।।
आपन प्रीतम बसेला सखी जॅहवाँ, ए सोहागिनि !
सहजे में उतरि लेहु पार।।
लछिमी सखी गावे निर्गुनवाँ, ए सोहागिनि !
ना त टुटेला सोऽहं तार।।