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कब से / लोग ही चुनेंगे रंग
Kavita Kosh से
अँधेरे में
दो छोटी मोमबत्तियाँ
आधी जलीं
पतंगों से खिलवाड़ करती चलीं
एक रेत पर बैठी हाथ लहरा रही
लहरें उमड़तीं आ रहीं
दूसरी बैठी उसे एकटक निहार रही
एक की लौ इस वक्त आसमान
दूसरी नाच रही मदमत्त
साथ हवा साँ साँ
लौ, लपटें और बहाव
कब से, कब से!