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कबूतर / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
तालाब सूख गये हैं गर्मी से
और ये कबूतर पानी भरी बाल्टी से
बुझा रहें हैं अपनी प्यास
अभी थोड़ी देर पहले ही
दाना खाया है इन्होंने
और उड़ रहे हैं मंदिर के चारों ओर ।
तपती धूप में चमकता है
मंदिर का गुम्बज
और कौओं के लिए
कोई भोजन नहीं यहाँ
ये कबूतर ही हमेशा दोस्त रहे मंदिरों के
कहीं न कहीं इनकी जगह है
दीवारों में रहने की
और ये सीधे-सीधे पालतू,
हाथ की अँगुलियों तक पर
बैठाया जा सकता है इन्हें ।