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कबूतर सपना / अग्निशेखर
Kavita Kosh से
जलावतनी में
एक स्वप्न देखा मैंने
मेरे छूटे हुए घर के आँगन में
फिर से हरा हो गया है चिनार
और उसकी एक डाल पर
आ बैठी है
झक सफ़ेद कबूतरों की एक जोड़ी
मुझे देखती अनझिप
ये कबूतर
उतरना चाह रहे हैं मेरे कंधो पर
लगा मुझे ये आए हैं
स्वामी अमरनाथ की गुफा से उड़कर
मेरे उजड़े आँगन में
कि आज चिनार के नीचे
नए सिरे से घटित होती है
अमरकथा