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कभी-कभी कहता है यह मन / विनोद तिवारी
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कभी-कभी कहता है यह मन
काश कि फिर आ जाए बचपन
वे आँखें हम भूल न पाए
जिन आँखों बसता था सावन
नफ़रत उसको तोड़ न पाई
प्यार ने जो बाँधा था बंधन
बूढ़ी माँ रोने लगती है
याद आते बाबुल का आँगन
यह जीवन भी क्या जीवन है
ख़ुशियों से रहती है अनबन
सीधे नज़रों में झाँको तो
झूठ नहीं बोलेगा दरपन