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कभी अनसुनी-सी कोई धुन बजेगी / रुचि चतुर्वेदी

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कभी अनसुनी-सी कोई धुन बजेगी
मेरे गीत भी याद आने लगेंगे,
कभी आसमाँ को जो देखोगे गुमसुम,
तो बादल कथा गुनगुनाने लगेंगे।


भुला दो भले प्रेम मेरा सदा को
मगर याद मेरी भुलाओगे कैसे,
भले इस चमन में नये फ़ूल होंगे
वही खुश्बुए फिर से लाओगे कैसे।

कभी गम लिये सर दीवारो पर रख दो
तो पत्थर भी गज़लें सुनाने लगेंगे
कभी अनसुनी ...॥

कसम खाके भी जो कसम भूल जाये
उसे फिर कसम कोई कैसे दिलाये,
सुनी अन्सुनी जो करे बात सबकी
तो आवाज़ दे कोई कैसे बुलाये।

अभी छेड़ दे तार कोई जो मन का
तो अाँसू भी अाँसू बहाने लगेंगे।
कभी अनसुनी ...॥।

हर ईक स्वांस में है वही बाँसुरी
जो तुम्हारी मधुर तान सुनकर बजी थी,
ये बिन्दिया तुम्हीं ने सजायी थी मुख पर
अधर पर तुम्हारी ये लाली सजी थी।

गणित ज़िन्दगी का बिगाड़ेगी सांसें
अधर भी पहाडे सुनाने लगेंगे।
कभी अनसुनी ...॥

जुड़ी गाँठ तुमसे जुड़े सारे बंधन
ये जन्मो का रिश्ता क्यों इक पल में टूटा,
नहीं सात फ़ेरे ये सातों जनम हैं
तो फिर साथ साथी क्यों ये अपना छूटा।

भुला ना सकोगे मेरा प्यार मन से
भुलाने में हमको ज़माने लगेंगे।
कभी अनसुनी ...॥

चलो आओ फिर मिलके बगिया सजायेँ
भुलाकर ख़ता प्यार का घर बनाये,
भले साथ दें ना ये लहरें हमारा
चलो बन नदी इन तटो को मिलाये।

चलो पत्थरों पर लिखें प्यार अपना,
लिखा रेत पर सब मिटाने लगेंगे।
कभी अनसुनी ...॥