भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कभी तो मिलेगी, कहीं तो मिलेगी / मजरूह सुल्तानपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कभी तो मिलेगी, कहीं तो मिलेगी
बहारों की मंज़िल राही
बहारों की मंज़िल राही ...

लम्बी सही दर्द की राहें
दिल की लगन से काम ले
आँखों के इस तूफ़ाँ को पी जा
आहों के बादल थाम ले
दूर तो है पर, दूर नहीं है
नज़ारों की मंज़िल राहि
बहारों की मंज़िल राही ...

आ हा हा हा, ल ला, ला ल ल, अह हा हा ह ह

माना कि है गहरा अन्धेरा
गुम है डगर की चाँदनी
मैली न हो धुँधली पड़े न
देख नज़र की चाँदनी
डाले हुए है, रात की चादर
सितारों की मंज़िल राही
बहारों की मंज़िल राही ...