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कम नहीं होता अँधेरा रात का / बल्ली सिंह चीमा
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कम नहीं होता अँधेरा रात का ।
आ करें चर्चा सुबह की बात का ।
जब ज़हर पीना ही है तो दोस्तो !
क्यों न लें फिर नाम हम सुकरात का ।
देश में सूखा पड़ा पर वो मज़े से,
कर रहे दिल्ली ज़िकर बरसात का ।
क्या कहूँ, किससे कहूँ औ’ क्या करूँ,
दिल के अन्दर जल रहे जज़्बात का ।
चाहता हूँ ख़ुश रहूँ यारो मगर,
क्या करूँ दिल में छिपे सदमात का ।
बाढ़-पीड़ित क्षेत्र में, ऐ मूर्खो !
गीत मत गाओ मुई बरसात का ।
सरकसी तेरे इशारों पर चलूँ क्यों,
मैं तो अब भी शेर हूँ जंगलात का ।
हर अँधेरा हार जाएगा अगर,
मिल के गाएँ गीत हम परभात का ।