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कमाल की औरतें २५ / शैलजा पाठक
Kavita Kosh से
तुम्हारे पास हर रंग
का पिंजरा है
रंगीन वादे हैं
कटोरी में धरा पानी
छलकता सा है
मैं चूकना नहीं चाहती
मेरे पास एक ज़िन्दगी है
मैं अपनी उड़ान नील आकाश तक
आजमाना चाहती हूं
खाली पिंजरा हवा के साथ गोल-गोल
घूम रहा है
तुम्हारा अहंकार मथ रहा है
खुले पंखों सा स्वप्न समंदर की
सबसे बड़ी लहर पर सवारी करने लगा।