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कमौतिन भौजी / कालीकान्त झा ‘बूच’
Kavita Kosh से
भौजी नव सलवार सियौलनि-भैया पुरने साँची मे
मियाँ रहला गामे बीबी सर्विस पौलनि राँची मे
भोरे आंगन कुचरल कौआ
भैया पड़ल माथ तर पौआ
सपने मे भौजी के पौलनि
प्रेमे पासी पाँज लगौलनि
प्यासल-प्यासल आँखि सटल सूखल खरकट्टल काची मे
करथि आंगनक चैकीदारी
काज भानसक लागनि भारी
दहिना अंग जखन कऽ फड़कनि
अभिलाषा मे छाती धड़कनि
रोटी नहिए बेलऽ आयल
बना लैत छी दलिपिट्ठी
एहि जीवन सँ मरने पक्का
ई हम्मर अंतिम चिट्ठी
मिलनक लेल प्राण अछि अटकल लटकल विरहक फासी मे
भौजी साझे आबि गेली हे
दूहल देह गुहल छनि जुट्टी
भैयाक सौभाग्य सुशीतल
बनि जायत ई गरमी छुट्टी
रूसल पति के कनियाँ बौंसथि गम-गम लौंग अराँची मे
मियाँ रहला गामे बीबी सर्विस पौलनि राँची मे।