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कर रहे शिकवे-गिले हैं / कैलाश झा 'किंकर'
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कर रहे शिकवे-गिले हैं
साथ जिनके हम चले हैं।
नींद पूरी हो न पायी
चाँद-तारे सब ढले हैं।
उम्र बीती बाग़ की पर
फूल अब भी अधखिले हैं।
फेसबुक की ही बदौलत
आप से फिर आ मिले हैं।
धूप, वर्षा और जाड़ा
झेल हम दुख में पले हैं।
ईद-होली में तो "किंकर"
दोस्त से मिलते गले हैं।