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कर ले मौत प्रतीक्षा / सुरेन्द्र स्निग्ध
Kavita Kosh से
क्यों पैदा कर दी तुमने
एक बार पुनः जीने की इच्छा
मेरे जीवन की विशाल बंजर
ज़मीन पर
तुम उग आई हो
बनकर ख़ूबसूरत फूल
तुम्हारे प्यार के विशाल
घने वृक्ष के नीचे
अपने उत्तप्त जीवन में
मैंने पा ली है शीतल छाँह
बैठूँगा कुछ देर
इसी घनी शीतल छाँह के नीचे
कहूँगा अपनी मौत से भी
कर ले कुछ देर प्रतीक्षा
अपनी प्रेमिका की बाँहों से हटने की
अभी एकदम नहीं है इच्छा।
इनकी नन्हीं साँसों से
अलग करने को अपनी साँसों को
अभी नहीं है इच्छा !