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करतूतों जैसे ही सारे काम हा गये / नईम
Kavita Kosh से
करतूतों जैसे ही सारे काम हा गये,
किष्किन्धा में
लगता अपने राम खो गये।
बालि और वीरप्पन से कुछ कहा न जाये,
न्याय माँगते शबरी, शम्बूकों के जाये।
करे धरे सब हवन-होम भी
हत्या और हराम हो गये।
स्वपनों, सूझों की जड़ में ही ज्ञानी मट्ठा डाल रहे हैं,
अपने ही हाथों अपनों पर कीचड़ लोग उछाल रहे हैं।
जनपदीय क्षत्रप कितने ही
आज केन्द्र से वाम हो गये।
देनदारियों की मत पूछो, डेवढ़ी बैठेंगी आवक से,
शायद इसीलिए प्रभु पीछे पड़े हुए हैं मृगशावक के।
वर्तमान रिस रहा तले से,
गत, आगत बदनाम हो गये।