भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
करमा गीत - 2 / पीसी लाल यादव
Kavita Kosh से
कुहु-कुहु कोइली कुहके,
कुहु-कुहु कोइली कुहके,
महर-महर आमा मउरे
परसा फूल सेमरा झउरे
तितली भँवरा रस चुहके।
निहरे-निहरे मोटियारी मन
टोरे तेंदू-पाना।
गा-गा के गीत चेलिक
मारत हवँय ताना॥
कुहु-कुहु कोइली कुहके-
तक धिनाधिन धिन
छिड़कत हवय माँदर।
झूमर-झूमर करमा नाचे
एक मन के आगर
कुहु-कुहु कोइली कुहके-
जुड़-जुड़ पवन पुरवाही
होगे हे अब कुन-कुन।
मन भँवरा गिंजर-गिंजर
गावय गीत गुन-गुन॥
कुहु-कुहु कोइली कुहके-