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करवाचौथ के व्रत / जयकृष्ण राय तुषार

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कभी मूरत कभी सूरत से हमको प्यार होता है
इबादत में मुहब्बत का ही इक विस्तार होता है।

हम करवाचौथ के व्रत को मुकम्मल मान लेते हैं
जमीं के चांद को जब चांद का दीदार होता है।

पुजारिन बनके पतियों की उमर की कामना करतीं,
सुहागिन औरतों का इससे बेड़ा पार होता है।

तुम्हें ऐ चांद हिन्दू देख लें तो चौथ होता है,
मुसलमां देख लें तो ईद का त्यौहार होता है।

यही वो चांद है बच्चे जिसे मामा कहा करते,
हकीकत में मगर रिश्तों का भी आधार होता है।