भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
करिया कँवर कन्हैया / पीसी लाल यादव
Kavita Kosh से
हाँ करिया कुँवर कन्हैया-
नाच नचाए ताता थैय्या।
जमुना तीर म रास रचाए-
अरे बंसी के बजइया।
वृंदावन के गूंज गलिन म
ठउँहे नाच नचाए।
रद्दा रंेगत गगरी फोरे
दूध-दही ल नंगाए॥
कोनो सखी ल छोड़े नहीं,
धेनु के चरईया।
धुन सुन के बंसुरिया के,
जी उकुल-बुकुल होइ जाए।
का मोहनी डारे कन्हैया
कुछु समझ नई आए॥
सुध-बुध बिसराए सबके
नांग के नथइया।
जतके करे टिमाली कान्हा
ततके मन नीक लागे।
सऊत बने मुरलिया तभो
सब ल मीठ लागे॥
सबके दुःख-दरद हरे ओ,
गोबर धन के उठइया।