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करिया सुरुज / भुवनेश्वर सिंह भुवन
Kavita Kosh से
जगतक सूरज करिया रहतै
तब तक घुप्प अन्हरिया रहतै
कवि के चाँद नुकैलोॅ रहतै
सरङोॅ में तिनडरिया रहतै
ध्रुवतारा केॅ कोय नै चिन्हतै
बाप-पूत सतलरिया रहतै
केकरो फसल घरें नै ऐतै
तब तक डाकू अरिया रहतै
रोज घोटाला-घपला बढ़तै
जब तक राज उधरिया रहतै
पढ़ला-लिखलां झिटकी चुनतै
अपराधी रोजगरिया रहतै
केकरो खेत नै जोतलोॅ जैतै
जब तक बरदा अड़िया रहतै
बिना जुगुत के चरखा चलतै
सरङगोॅ में रतपढ़िया रहतै ।