भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
करुणा का गहरा गुंजार / रामकुमार वर्मा
Kavita Kosh से
करुणा का गहरा गुंजार।
जिसमें गर्वित विश्व पिघल कर बनता है आँसू की धार॥
विश्व-साँस का नव निर्झर प्रिय,
मधु-प्रिय कोकिल का मधु-स्वर प्रिय;
मेरे जीवन के मधुवन में यह है मधुकण का श्रृंगार॥
सावन-शिशु घन-अंकित अम्बर,
रिमझिम रिमझिम है पुलकित स्वर;
कितने प्राणों के स्वाती में यह मोती-सा उज्ज्वल प्यार॥
करुणा का गहरा गुंजार।