भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
करुणा बचाकर रखो / दिनकर कुमार
Kavita Kosh से
करुणा बचाकर रखो
आपातकाल के लिए
अँग्रेज़ी पत्रिकाओं के चमकते
रंगीन पृष्ठों पर
लहूलुहान तस्वीरें
तुम्हें हिला नहीं सकतीं
रेंगते हुए
घिसटते हुए लोग और
उनकी चीख़ से
पिघलती नहीं
तुम्हारे भीतर संवेदना
इर्द-गिर्द की खामोशी
हताशा से झुलसे हुए चेहरे
तुम्हें सोचने के लिए
विवश नहीं कर सकते
बचाकर रखो करुणा
मुनाफ़े का सौदा करते वक़्त
किसी को
ग़ुलाम बनाते वक़्त
काम आएगी करुणा