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करेजा सटा लेलियो / सतीश मिश्रा

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तूँ न अैलऽ त हम तोर बाना बना
ऐनक में करेजा सटा लेलियो।
ई समझ के कि तोरे से लिपटल ही हम
लहकल लहर कुछ घटा लेलियो।।

तूँ अमावस के चन्दा के पीछे छिपल,
हमरा पर परिबा के पहरा पड़े।
माली आउ मालिन के आगे रखल
गंध बेला-बैजन्ती के चुभ सिन गड़े।
फिर समझ के कि हमरे हिया में हऽ तूँ
गजरा गला में अँटा लेलियो।

बरसल तो बरसात बरसे बरस
पर न भीजल हमर मन के एक्को कली
दरस के तरस मुँह अपन खोल के
भटकल घटा के गली दर गली
फिर नयन में तोरा हम पिआसल समझ
लोर टपका के पिपनी पटा लेलियो।

कोई कहलक कि तूँ हऽ घिरल भीड़ में
त मन्दिर के चउखट ले हमहँ गेली
मगर देख के एगो पत्थर पड़ल
हहरल नजर हम अलग कर लेली
अब ई जंगल तोहर, तूँ जे चाहऽ करऽ
हम अपना ला नौ मन बँटा लेलियो।