भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

करेह धार / बुद्धिनाथ मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गाम अनचिन्हार भेल,
लोक अनचिन्हार
चिनहै अछि मुदा
आइ धरि करेह-धार ।।

वैह तप्पत बाउल आर
वैह कंचन पानि
डेगे-डेगे लैए
गोड़ दुनू छानि
चिरै-चुनमुनी आइयॊ
दैत अछि हकार ।

कुशल-छेम पूछै अछि
बूढ़ बड़क गाछ
पूछै अछि 'कोना रहै छी'
मखान-माछ
ठकमूरी लागल अछि,
फूटै अछि नहि बकार ।

डोमबा गाछीक आम
पूछै अछि हमर नाम
पूछै अछि जाति-पाँजि
अपने रोपल लताम
तामसे न बाजै अछि
हमरा सँ घरक चार ।

नगरक देखादेखी गाम
क‌‍‌' रहल विकास
पानि बिकायत एत्तहु,
सुनि कें कोसी उदास
बिला गेलै टोल आर
भाथल गामक इनार ।