कर्ण-दोसरोॅ सर्ग / रामधारी सिंह ‘काव्यतीर्थ’
अस्त्र-शस्त्र के शिक्षा पांडवे
कृपाचार्य सेॅ पहिने पैलकै,
द्रोणाचार्य से बादोॅ में
वै विद्या में निपुणता पैलकै।
तेकरोॅ बादे कौशल दिखावै वास्तें
भारी समारोह करलकै,
नगरवासी कौशल देखै लेॅ
बड़ी भारी भीड़ लगैलकै।
तरह-तरह के खेल खेली केॅ
दर्शक के मनोरंजन करलकै,
यै खेल समारोह में अर्जुनें
धनुष विद्या में कमाल देखैलकै।
अद्भुत चतुरता देखी केॅ
राजवंशी व दर्शक सिनी खुशी मनैलकै,
ई देखी-देखी केॅ दुर्योधनें
मनोॅ में ईर्ष्या के आग जलैलकै।
यही बीचोॅ में रंगभूमि के द्वार पर
ताल ठोकै के शब्द सुनैलै,
दर्शक, खेलाड़ी सबके धियान
तुरंते हुन्हें तेॅ चलले गेलै।
रोबीला आरो तेजस्वी युवक
मस्तानी चाल सेॅ आवी गेलै,
रंगभूमि में आवी केॅ युवक धनुर्धर
अर्जुन के सम्मुख खड़ा होलै।
ऊ युवक दोसरोॅ कोय नै
अधिरथ पोषित कुन्ती पुत्रा कर्ण छेलै,
कर्ण कुंती के बेटा छेकै
ई बात केकरहौ नै मालूम छेलै।
रंगभूमि में ऐत्हैं कर्णें
महावीर अर्जुन केॅ ललकारने छेलै,
तोरा सेॅ बढ़ी केॅ कौशल दिखलैभौं
जे सबकेॅ दिखलैने छेलै।
कहोॅ अर्जुन धनुधारी
तोंय यै वास्तें छोॅ तैयार,
चुनौती सुनी केॅ दर्शक मंडली के
घटी गेलै अर्जुन सेॅ पियार।
ईर्ष्याग्नि में जलै वाला दुर्योधन केॅ
मिली गेलै अच्छा हथियार,
खुशी सें उछली पड़लै
आरो छाती लगाय के करलकै सत्कार।
पूछेॅ लागलै बड्डी परेम सेॅ कैसें ऐल्है ?
की करेॅ सकेॅ छी तोरा लेॅ,
कर्ण बोललै तोरा सेॅ मित्राता
आरो अर्जुन से द्वन्द्वयुद्ध करै लेॅ ।
चुनौती सुनत्हैं अर्जुन तमतमाइये गेलै
आरो उठी पड़लै बोलै लेॅ,
बिना बोलैने, बिना पूछने ऐलोॅ छो
आपनों निंदा करवावै लेॅ।
कर्णें कहलकै खाली तोरोॅ नै
सब्भे प्रजा केॅ छै अधिकार,
छत्रिय के धर्म बल के अनुगामी
तीरोॅ सेॅ करोॅ ललकार।
ई चुनौती सुनी केॅ दर्शक
ताली बजावै के होलै हकदार,
बनलेॅ दू दल, अर्जुन के एक दल
दोसरोॅ कर्ण के मालदार।
पार्टीबाजी के परथा संसारोॅ में
बहुत दिना सेॅ आवी रहलोॅ छै,
समारोह के औरत सिनी भी
दू दलोॅ में बँटी गेलौ छै।
औरत दल में कुन्ती भी छेलै,
कर्ण के देखतैं पहचानी लेने छै,
भय आरो लज्जा से कुन्ती
मूरछित होय केॅ गिरी पड़लोॅ छै।
विदुर कृपा सें दासी ऐलै
तबेॅ हुनका चेत करवैलकै,
चेत होला पर भी कुन्ती केॅ
लोगें किंकर्त्तव्यविमूढ़ ही पैलकै।
यही बीचोॅ में गुरु कृपाचार्य
आबी केॅ कर्ण सेॅ कहलकै,
अज्ञात वीर कर्ण के
आपनों परिचय दै लेॅ कहलकै।
पांडु पुत्रा आरो कुरु वंश
वीर अर्जुन द्वन्द्व युद्ध वास्तें तैयार,
मतर तोंय कोन वंश,
कोन राजवंश के यश करै छोॅ विस्तार।
द्वन्द्व युद्ध बराबरी में होय छै,
परिचय दै तोंय राजकुमार,
ई बात सुनी के कर्ण लज्जित,
मतर दुर्योधन मनों में उठलै झनकार ।
जों बराबरी के बात ही छै,
हम्में कर्ण के अंगराजा बनैवै,
तुरन्त पितामह भीष्म
आरो पिता धृतराष्ट्र सेॅ अनुमति लेवै।
रंगभूमि में ही राज्याभिषेक के
सब सामग्री मंगैवै,
वीर कर्ण केॅ अंगदेश के राजा
अभी घोषित करवै।
सब इन्तजाम करी केॅ दुर्योधनें
कर्ण के राज्याभिषेक करलकै,
रंगभूमि के सभा बीच में
अंगदेश के राजा बनैलकै।
यही बीचोॅ में अधिरथ सारथी
लाठी टेकतें प्रवेश करलकै,
अंगदेश के राजा कर्णें धनुष रखी केॅ
सारथी के सम्मुख सिर झुकैलकै।
अधिरथें बेटा कही केॅ कर्ण केॅ
पियार सेॅ गला लगैलकै,
अभिषेक जल सेॅ भींगलोॅ सिर पर
आनन्द के आँसू बहैलकै।
ई नजारा देखत्हैं भीमें
जोर-जोर सें ठहाका मारलकै,
सारथी सुत केॅ धनुष छोड़
हाथोॅ में चाबुक लैलेॅ कहलकै।
तोरा हाथों में चाबुक शोभतौं,
अर्जन सेॅ द्वन्द्व युद्ध करै में योग नै छै,
सभा बीच खलबली मची गलै
सूरज भी डूबै लेॅ जाय छै।
सभा विसर्जित होय गेलै,
दर्शक वृन्द शोर मचैने घोॅर जाय छै,
कुच्छु लोगें कर्ण के जय
कुच्छु लोगें अर्जुन आरो दुर्योधन के जय बोलै छै।