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कर्ण-सातमों सर्ग / रामधारी सिंह ‘काव्यतीर्थ’

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युद्धारम्भ के पहिनें एक,
भीष्म दुर्योधन केॅ धीरज बंधाय,
वीर सबके युद्ध कुशलता
आरो खुबियों केॅ बताय।

आपनों पक्ष के वीर-प्रशंसा सुनी
दुर्योधन मन हरसाय,
यही बीचोॅ में महावीर आरो
युद्ध वीर कर्ण केॅ बतलाय।

भीष्म बोललैµकर्ण कोय
 भारी वीर नै मानलोॅ जाय,
पांडवोॅ के प्रति दुर्योधन
मानो द्वेष भाव बढ़ाय।

गर्व सेॅ भरलोॅ कर्ण,
अतिरथी भी नै कहलोॅ जाय,
विवेक के कमी छै,
दोसरा के निंदा करै के व्यसनी कहलाय।

जन्मजात कवच-कुंडल केॅ भी हाथोॅ सेॅ गमाय देलकै
युद्ध में भी अधिक सहायता करतै ई भी नै झलकै।

परशुराम सेॅ अटल शापोॅ भी
प्राप्त करलकै,
रणभूमि में रथ चक्का धँसतै,
मौका पर भूलै के शाप पैलकै ।

तांका
1. भीष्म के बात
छै बिल्कुल सच्चा
कर्ण नै अच्छा
दुर्योधन केॅ तीखोॅ
द्रोणाचार्य केॅ मीट्ठोॅ ।

2. द्रोण बोललै
पितामह जी ठीक
कर्ण मदांध !
घमंडी भी कम नैं
युद्ध में तेॅ हारनैं ।

3. भीष्म द्रोण के
कड़ुवोॅ बात सुनी
कर्ण केॅ क्रोध ।
पितामह सेॅ बोलै
घृणा कैहने होलै ।

4. युद्ध योग्य नै
हमरौ राय सुनोॅ
मित्रों में फूट ।
आपनों के चेष्टा छै
बुरा चाह कैन्हैं छै ।

कड़ुवा वचन कही केॅ दिल केॅ कैन्हें बेधै छियैं
जो आपने के राय में हम्में युद्ध योग्य नहियें छियै।

तेॅ आपन्हौं कान खोली केॅ तनटा सुनी लियै
कर्ण-दुर्योधन के बीच नफरत करावै छियै ।

बूढ़ा छोॅ, बेदम छोॅ, बढ़ी-चढ़ी केॅ कैन्हैं बोलै छोॅ
क्षत्रिय में इज्जत बुढ़ापा नै, वीरता के होय छोॅ।

मन-मुटाव पैदा करी केॅ
मित्राता तोड़ै के कोशिश करै छोॅ,
तेॅ सुनी लेॅ, जान जाय तेॅ जाय
मित्राता केॅ तोड़ै नै सकै छोॅ।

कर्ण कहलकै दुर्योधन केॅ,
सोची केॅ वेहेॅ करोॅ जेकरा में हित हुवौं,
बूढ़ा भीष्म पर भरोसा नै
हुनकोॅ बात सें मनों में अड़चन नै हुवौं।

हमरोॅ तेज कम करै लेॅ चाहै छै
तोरा विश्वास नै हुवौं,
हौसला पस्त करै के साजिश छेकै
हम्में ई तेॅ बूझै छिहौं।

बूढ़ा शरीर के की ठिकानों, मौत सिर पर खाड़होॅ छै,
तैय्योॅ गर्व करै छै केतना, केकरहौ कुच्छु समझैनै छै।

बूढ़ा सें सलाह लेना चाही
सब्भैं ई बात मानै छै,
मतर बूढ़ापा में कार्य-शक्ति के
सीमा तेॅ नहियें होय छै।

बात हुन्ही ऐसनों बोलै छै
कि जवानी फेरू सेॅ आवी गेलोॅ छै,
मतर थौपलोॅ जवानी
केकरहौ आय तक काम नै अइलोॅ छै।

की सोची केॅ भीष्म पितामह सेनापति बनैलोॅ गेलोॅ छै
लड़ेॅ सिपाही नाम तेॅ हवलदार के होन्हैं छै।

प्राण पर खेलतै जवानसिनी
यश मिलतै बुढ़वा केॅ,
काँपतें हाथोॅ में सेना संचालन,
घटते हौसला जवनका केॅ।

हम्में लड़ाई नहियें करभौं
जब तांय सेनापतित्व भीष्मों केॅ,
आपनों दोष दोसरा के मुँहोॅ सेॅ
केकरहौ नै क्षमता सुनै केॅ।

कर्ण के कटुवचन सुनी केॅ,
भीष्में क्रोध पीवी लेलकै समय देखी केॅ,
स्थिति विकट छै, भार सम्हालै केॅ
यहेॅ कारण छै हमरोॅ चुप रहै केॅ।

कोन कुघड़ी में तोंय अइलै
कौरव पर संकट भारी पड़लै,
वाक्-युद्ध देखी केॅ दुर्योधन बोललै
पितामह केॅ शांत हुवै लेॅ बोललै।

दुन्हौं के सहायता चाहै छौं
विजय प्राप्ति के आशा करने छौं,
महान वीरता के परिचय देना छौं
कल सुबह युद्ध शुरु होय वाला छौं।

भीष्म पितामह शांत हो गेलै
कर्ण तेॅ जिद पर अड़ले रहलै,
जब तांय भीष्म सेनापति रहथौं
कर्ण हथियार नहियें उठैथौं।

दुर्योधन केॅ मानै लेॅ पड़लै
कर्ण के प्रण पूरा होय केॅ रहलै,
दस दिन तांय रण में नै गेलै
मतर सेना केॅ भेजतें रहलै।

भीष्म तन वाणों पर पड़लोॅ
रणभूमि में हताहत छै पड़लोॅ,
तबेॅ कर्ण केॅ भी होश अइलोॅ
आपनों भूल महसूस होलोॅ।

कर्ण भीष्म के पास पहुँचलै
दयनीय हालत देखी केॅ बोललै,
सर्वथा निर्दोष जे होलै
राधा पुत्रा हुनका प्रणाम करलकै।

कर्ण मुख पर भय छाया देखलकै
भीष्म के दिल मंे दया भरी गेलै,
परेम सें कर्ण के सिर पर हाथ फेरलकै
खुशी सेॅ आशीर्वाद भी देलकै।

कर्ण प्रेरणा
द्रोण केॅ सेनापति
कर्ण युद्ध में।

तोंय राधा के पुत्रा नै बेटा
कुन्ती देवी के पुत्रा तोंय जेठा,
नारदें कहलकै बांध मुरेठा
पीड़ा दवाय बोलेॅ भीष्म लेटाही लेटा।

दानवीरता, शूरवीरता सेॅ परिचित
कृष्ण-अर्जुन जैसनों चरचित,
पाण्डव जेठा होय केॅ बनोॅ नै गर्हित
पाण्डव सेॅ मित्राता करी लेॅ यहेॅ सुरभित।

कर्ण बोललैµकुन्ती पुत्रा तेॅ छेकौं
सूत-पुत्रा तेॅ नहियें छेकौं,
दुर्योधन ने सम्पत्ति देलकौं
हुनकोॅ सहायता करना हमरोॅ धर्म छेकौं।

भीष्म सेॅ अनुमति चाहै कौरव दलोॅ से लड़ै के
जे कुछ कहलों, जे दोष छै, प्रार्थना छै क्षमा करै के।

भीष्म बोललै वेहेॅ करोॅ जे तोरोॅ इच्छा करै के
जानि लेॅ ई बात कर्ण, जीत होतै धर्माें के।

परशुराम केॅ जीतै वाला शिखंडी सेॅ मारलोॅ गेलै
संकट बाढ़ सेॅ पार करै वाला वू नौका छेलै।

वोन्हैं कौरव केॅ सर्वनाश करै लेॅ
कृष्ण-अर्जुन तैयार छै,
जेना आग आरो हवा
जंगल जलाय के खाक करै छै।

कृपा दुष्टि दै, अनुगृहीत करोॅ येहेॅ प्रार्थना छै
भीष्म कर्ण के आशीर्वाद दै केॅ बोलै छै

जिनका तोंय मित्रा बनाय छो
हुनका सहारा देतें रहै छो,
जेना नदी समुद्र बीज केॅ मिट्टी दै छै
दुर्योधन केॅ तोंय रक्षा करै छो।

आवे तोरहै पर दुर्योधन के रक्षाभार
जिनका वास्तें कंभोज पछाड़,
हिमालय वासी किरत झमार
गिरिब्रज राजा पैलको नै पार।

हम्में चाहै छी कल्याण तोरोॅ
शत्राु सेॅ घमासान युद्ध करोॅ,
कौरव सेना के तोंय रक्षा करोॅ
येहेॅ आशीष कर्ण तोरा हमरोॅ।

कर्ण बड़ी प्रसन्न होलै भीष्म के आशीष पाय
रथ पर सवार होय रण क्षेत्रा में जाय,
दुर्योधन के मनों में अति आनन्द आय
भीष्म के बिछोह दुःख भूल पाय।