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कर्ण कर्तव्य और युद्ध / विश्राम राठोड़

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हाँ पराजय से लदा हुआ हूँ मैं
कुछ मर्यादा-सी आस लगी है मुझे
माना हार गया संसार से मैं अभी भी
पर आस लगी है मुझे

मैं कर्ण हूँ कर्तव्य पथ पर अडिग हूँ
दिया है मैंने भी वचन में इसलिए इसके प्रति सजग हूँ
दंड मुझे आज भी भोगना पड़ेगा
क्योंकि यह मेरा अपराध था

मन मेरा अब कुंठित होता है मैं लाचार था
समय सभी का परिणाम बतला रहा
मधुसूदन की आवाज़ किसी ना सुनी
बारंबार समझाया पर सभी ने की
अनसुनी

यह अफ़सोस की बात आज भी यह होता है
कर्ण तुम आज भी बन जाओ, उस द्रौपदी का क्या होता है
वर्तमान, भविष्य ,इतिहास अभी भी कहाँ सोता है
तुम एक कर्ण बनने से अच्छा, एक विधुर बन जाओ
राज कितना भी अच्छा हो, अगर सत्य का दम घुटता वहाँ से निकल जाओ

यह आलिशान भवन, शोहरत को कौन याद करेगा
अगर आप सक्षम हो और आप चुप हो तो कौन फरियाद करेगा
हमें हमारे उसूलों पर नहीं, हमें अपने आप पर भी झांकना पड़ेगा
कर्ण तुम आज भी बन जाओ, पर द्रौपदी का परिहास भी रोकना पड़ेगा