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कर्फ़्यू- शहर में / योगेन्द्र दत्त शर्मा
Kavita Kosh से
शहर में कर्फ्यू लगा है!
क्या भरोसा है किसी का,
कौन अब किसका सगा है!
सूर्य की हत्या हुई
आकाश लहू में सना है
पर क्षितिज के मंच पर
पहली सुबह की घोषणा है
कर रहा मौसम
समय के साथ, यह कैसी दगा है!
गुम हुए पंछी, मगर
अफवाह उड़ती हर दिशा में
लू-लपट के साथ
आदम-गंध घुल जाती हवा में
चुप्पियों के बीच में
चीत्कार यह कैसा जगा है!
अनमना मौसम
भरी-दुपहर, थका-सा ऊघता है
व्यग्र सन्नाटा
सहमते द्वार, आंगन सूंघता है
स्तब्ध-सा सौहार्द
आदमखोर बस्ती में ठगा है!
कर रहा उन्माद
तांडव नृत्य, यह सब क्या हुआ है?
भस्म जड़, चेतन-सभी
हर ओर से उठता धुंआ है
रक्त में डूबी हुई
विश्वास की देवापगा है!