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कर्फ्यू और एक छोटी लड़की / दीपक जायसवाल
Kavita Kosh से
हिंसा इतनी बढ़ गयी थी
कि शहर में लगाना पड़ा कर्फ्यू
देखते ही गोली मारने के
दे दिए गए थे आदेश
सड़कों पर बंदूक, पत्थर, खून
टूटे हुए चप्पल और सन्नाटे के सिवा
कुछ नहीं था
ताजी हवा और परिंदों ने कर्फ्यू के चलते
अपने रास्ते बदल दिए थे
लोगों के दम घुट रहे थे।
सड़क पर अचानक एक छोटी बच्ची दिखी
जिसकी माँ खाना बनाते वक्त
बाहर का दरवाज़ा बंद करना भूल गयी थी
वह हँस रही थी
खेल रही थी
उन टूटे हुए चपल्लों
बिखरे हुए पत्थरों के साथ
और पूछ रही थी बन्दूकों से
कि यह टूटे हुए चप्पल उनके हैं
अचानक बन्दूकें भारी हो गयी थी
वे उठ नहीं पा रही थीं
कर्फ्यू टूट गया था