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कल का दिन / केदारनाथ अग्रवाल
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कल का दिन चला गया,
बिना प्यार-पौरुष के
छला गया,
हाथों से मला
और पांवों से दला गया ।
('पंख और पतवार' नामक कविता-संग्रह से)