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कल के पन्नों पर / रोहित रूसिया
Kavita Kosh से
कल के पन्नों पर
हम लिख दें
अपना भी इतिहास
बीज रोपते हाथों की
उष्मा बन जाएँ
चट्टानी धरती पर
झरनों से बह जाएँ
सूखे कंठों की खातिर
हो लें
बुझने वाली प्यास
सोंधी मिट्टी वाला आँगन
हर चूल्हे की आँच
और न टूटे
गलती से भी
सम्बंधों के काँच
घुटते रिश्तों में फिर
भर दें
कतरा-कतरा साँस
कोहरे की धुँधली परतों से
क्या डरना है?
लू-लपटों से भरी राह भी
तय करना है
ठानेंगे तो
हो जाएगा
बित्ते भर आकाश
कल के पन्नों पर
हम लिख दें
अपना भी इतिहास