Last modified on 23 अक्टूबर 2013, at 22:58

कल गुलाब-वन में वह / कुमार रवींद्र

हाँ, यह सच है
रही अज़नबी है यह लड़की सूरज से
 
आँगन लीप
थाप गोबर पिछवाड़े वह
काट चुकी है
कितने ठंडे जाड़े वह
 
हाँ, यह सच है
देखे उसने नदिया-नाले अचरज से
 
आदमखोर बाघ से
बच कर वह आई
देवीचौरे पर
उसने ठोकर खाई
 
हाँ, यह सच है
झेलीं उसने विपदाएँ सब धीरज से
 
एक उम्र थी
जब वह भी थी छुई-मुई
कल गुलाब-वन में
वह लहू-लुहान हुई
 
हाँ, यह सच है
उसका परिचय नहीं हुआ है बृजरज से