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कल दिखी आग / अज्ञेय
Kavita Kosh से
दीखने को तो
कल दिखी थी आग
पर क्या जाने उस के करने थे फेरे
या उस में झोंकना था सुहाग!
चिह्न तो सब दिखाता है
पर दुजिब्भा है विधाता-
उस का लिखा पढ़ा तो सब जाता है
पर समझ में कुछ नहीं आता।
-और सपना सुन
बताता है सयाना
जजमान हैं बड़भाग
जिसे कल दिखी थी आग...
नयी दिल्ली, अप्रैल, 1980