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कल से क्या / हरीश भादानी
Kavita Kosh से
कल से क्या
आज से गवाही ले, मितवा !
घाटी में आँगन है
आँगन में बाँहें
बाँहती दहरिया की
कल से क्या
आज से गवाही ले, मितवा !
आँखों में झीले हैं
झीलों में रंग
रंगवती हलचल की
कल से क्या
आज से गवाही ले, मितवा !
माटी में सांसें हैं
सांसों के होठ
बोलती पखावज की
कल से क्या
आज से गवाही ले, मितवा !
दूरी पर चौराहे
चौराहे खुभते हैं
चरवाहे पाँवों की
कल से क्या
आज से गवाही ले, मितवा
रात एक पाटी है
पहर-पहर लिखता है
उज़लती हक़ीक़त बड़ी
कल से क्या
आज से गवाही ले, मितवा !
घाटी में आँगन है,
आँगन में बांहें
बाँहती दहरिया की
कल से क्या
आज से गवाही ले, मितवा !